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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

शिक्षा की बुनियाद सुधारने पर ही बात बनेगी; उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश उन राज्यों में से हैं,जहां प्राथमिक स्कूलों से माध्यमिक स्कूलों तक पहुंचने वाली लड़कियों की संख्या बेहद कम चूंकि देश में प्रथमिक स्कूलों के लाखों बच्चों के लिए अब भी.………

शिक्षा की बुनियाद सुधारने पर ही बात बनेगी; उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश उन राज्यों में से हैं,जहां प्राथमिक स्कूलों से माध्यमिक स्कूलों तक पहुंचने वाली लड़कियों की संख्या बेहद कम चूंकि देश में प्रथमिक स्कूलों के लाखों बच्चों के लिए अब भी.………

"आईआईटी के होनहार बच्चे अपनी उपलिब्धयों के जरिये निरंतर सुर्खियों में रहते हैं। दूसरी ओर, देश में प्राथमिक स्कूलों के लाखों बच्चों के लिए अब भी सामान्य घटाव में मुश्किलें आती हैं।"

हर कोई जानता है कि जनसांख्यिकीय अवसर भारत के पक्ष में है। हम यह भी जानते हैं कि भारत दुनिया के युवतर देशों में एक है, जहां की 62 प्रतिशत से अधिक की कार्यशील आबादी 15 से 59 वर्ष के बीच है, और कुल जनसंख्या के 54 प्रतिशत से अधिक की आबादी 25 वर्ष की आयु से कम है। 2020 तक भारत की औसत उम्र 29 वर्ष हो जाएगी, जबकि तब अमेरिका की औसत उम्र 40, यूरोप की 46 और जापान की औसत उम्र 47 वर्ष होगी। अगले दो दशकों में विकसित, अमीर देशों की कामकाजी जनसंख्या में जहां चार प्रतिशत की गिरावट आएगी, वहीं भारत में कामकाजी लोगों की संख्या में 32 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। यह हमारे लिए बहुत बड़ा मौका होगा, बशर्ते हमारे युवा जरूरी कौशल और ज्ञान के जरिये इस अवसर का सही ढंग से इस्तेमाल कर पाएं।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने कौशल पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक नए कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय का गठन किया है। राष्ट्रीय कौशल नीति का मसौदा तैयार किया गया है और आईटीआई का आधुनिकीकरण भी किया जा रहा है। कौशल विकास के लक्ष्य में कई दूसरे देश भी हमारी मदद करने के इच्छुक हैं।

ये सभी अच्छी खबरें हैं। लेकिन मुख्यधारा के राष्ट्रीय विमर्श में बुनियादी शिक्षा और कौशल विकास के बीच संबंध का जिक्र ही नहीं हो रहा। गुणवत्तापूर्ण बुनियादी शिक्षा के बगैर युवाओं के कौशल विकास का लक्ष्य सफल नहीं हो सकता। हताश करने वाले आंकड़े जमीनी यथार्थ बताने के लिए काफी हैं। जैसे, आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले 25 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ नहीं पढ़ सकते। जबकि गणित हर कक्षा में अब भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। एनजीओ प्रथम की 2014 की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट बताती है कि देश में पढ़ाई का बुनियादी स्तर हताश करने वाला और ठीक वैसा ही है, जैसा पांच वर्ष पहले था। वर्ष 2009 में आठवीं कक्षा के करीब 60 प्रतिशत छात्र अंग्रेजी के सामान्य वाक्य पढ़ पाते थे; जबकि 2014 में केवल 47 फीसदी छात्र ही ऐसा कर पाए।

आईसीटी (इन्फॉरमेशन, कम्युनिकेशन और टेक्नोलॉजी) विशेषज्ञता में दुनिया भर में भारतीय युवाओं की साख है। आईसीटी के जरिये नेशनल मिशन ऑन एजुकेशन निरंतर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से संपर्क बनाए रखता है और उन्हें नेशनल नॉलेज नेटवर्क से जोड़ता है। आईआईटी के होनहार बच्चे अपनी उपलिब्धयों के जरिये निरंतर सुर्खियों में रहते हैं। जबकि दूसरी ओर, देश में प्राथमिक स्कूलों के लाखों बच्चों के लिए अब भी सामान्य घटाव में मुश्किलें आती हैं। ग्रामीण स्कूलों के आंकड़े दिखाते हैं कि 60 फीसदी बच्चे अब भी गणित से जूझते हैं। वर्ष 2010 में चौथी कक्षा के 57.7 प्रतिशत बच्चे घटाव कर पाते थे, लेकिन 2014 में यह आंकड़ा घटकर 40.3 फीसदी रह गया।

स्कूलों में छात्रों के दाखिले में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन विभिन्न कारणों से बड़ी संख्या में बच्चे अब भी स्कूल छोड़ देते हैं। स्कूलों में सुविधाएं बढ़ी हैं, पर शिक्षकों और छात्रों की कम उपस्थिति अब भी चिंता का कारण है। आंकड़े बताते हैं कि स्कूल में हाजिर रहने वाले बच्चे भी पर्याप्त नहीं सीख पाते। इसमें लैंगिक फर्क को भी जोड़ लें, तो स्थिति और भी चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश उन राज्यों में से हैं, जहां प्राथमिक स्कूलों से माध्यमिक स्कूलों तक पहुंचने वाली लड़कियों की संख्या सबसे कम है। शिक्षा के क्षेत्र में लड़कों-लड़कियों का यह फर्क श्रम बाजार में भी दिखता है, जहां औरतों को तुलनात्मक रूप से कम वेतन मिलता है। ऐसे में, उन राज्यों में नई नौकरियां सृजित करने की जरूरत है, जो बुनियादी शिक्षा और ढांचागत सुविधाओं के मामले में पिछड़े हैं। ऐसे राज्यों में रोजगार सृजन के लिए युवाओं के तेज कौशल विकास की जरूरत पड़ेगी। लेकिन ऐसा हो, इससे पहले स्कूली शिक्षा में ढांचागत बदलाव और राष्ट्रीय प्रशिक्षु कार्यक्रम में कमोबेश विस्तार जरूरी होगा।

चूंकि हम शैक्षिक क्रांति के मामले में चीन का उल्लेख करते हैं, इसलिए यह समझना आवश्यक है कि वह देश आज इस ऊंचाई पर कैसे पहुंचा। इसकी सबसे बड़ी वजह दरअसल शिक्षा में उसका निवेश है। वर्ष 1998 से चीन ने शिक्षा क्षेत्र में व्यापक निवेश किया; जीडीपी का जितना हिस्सा शिक्षा के मद में वह खर्च करता था, उसका लगभग तिगुना उसने इस क्षेत्र में झोंक दिया। नतीजतन वहां कॉलेजों की संख्या में दोगुनी और छात्रों की संख्या में चार गुनी वृद्धि हुई। वर्ष 1997 में चीन में कॉलेज जाने वाले छात्रों की संख्या दस लाख थी, जो 2007 में बढ़कर 55 लाख हो गई। वर्ष 2010 में वहां शिक्षा की दर 95 प्रतिशत से अधिक थी, और इस क्षेत्र में लैंगिक अंतर घटकर महज पांच फीसदी रह गया-98 प्रतिशत लोगों की तुलना में 93 फीसदी महिलाएं शिक्षित थीं। तुलना करें, तो 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में शिक्षा की दर 74.04 प्रतिशत है-यहां पुरुष शिक्षा दर 82.14 फीसदी और महिला शिक्षा दर 65.46 प्रतिशत है। शिक्षा के मामले में हमारे राज्यों के बीच भी भारी अंतर है। ऐसे में बुनियादी शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। शुरुआती वर्षों में मजबूत आधार के बगैर बच्चों का विकास नहीं हो सकता। शिक्षा के बुनियाद को सुधारे बिना कौशल विकास कार्यक्रम की सफलता संभव नहीं है।
-पत्रलेखा चटर्जी विकास संबंधी मुद्दों पर लिखने वाली वरिष्ठ स्तंभकार

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