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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

पहली बार जुलाई के बजाय अप्रैल से शुरू होने जा रहे नवीन शैक्षिक सत्र : बेसिक शिक्षा महकमा 'जुगाड़' के सहारे नवीन सत्र चलाने की तैयारी में जुटा-

पहली बार जुलाई के बजाय अप्रैल से शुरू होने जा रहे नवीन शैक्षिक सत्र : बेसिक शिक्षा महकमा 'जुगाड़' के सहारे नवीन सत्र चलाने की तैयारी में जुटा-

1-बजट के अभाव में दो वर्षों से स्कूल भवनों की नहीं हुई रंगाई-पुताई

2-‘जुगाड़ ’ के सहारे नवीन शिक्षा सत्र चलाने जा रहा बेसिक शिक्षा विभाग

निघासन-खीरी | पहली बार जुलाई के बजाय अप्रैल से शुरू होने जा रहे शैक्षिक सत्र को बेसिक शिक्षा महकमा जुगाड़ के सहारे चलाने की तैयारी में है। परिषदीय स्कूलों में नामांकन कराने वाले बच्चों के हाथों में इस बार पिछले सत्र की फटी पुरानी किताबे थमाई जाएंगी। बजट न आने से दो साल से स्कूल भवनों की रंगाई-पुताई भी नहीं हो सकी है।

बेसिक शिक्षा महकमे ने इस बार जुलाई के स्थान पर अप्रैल से शैक्षिक सत्र शुरू करने के निर्देश जारी किए हैं। लेकिन इंतजामों को देखकर तो विभाग के इस निर्णय पर हंसी ही आती है। मरता क्या न करता की तर्ज पर बेचारे शिक्षकों ने तो आनन-फानन में मार्च माह में ही परीक्षाएं कराकर रिजल्ट सुना दिया लेकिन नए सत्र के लिए विभाग की तैयारियां शुरू ही नजर आ रही है।

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1अप्रैल 2015 से प्रारम्भ हो रहे नवीन शैक्षिक सत्र हेतु पाठ्य पुस्तकों के वितरण की अन्तरिम (पुरानी पाठ्य पुस्तकों को वापस लेकर वितरण करना) व्यवस्था के सम्बन्ध में आदेश जारी |

आलम यह है कि अभी तक बच्चों को उपलब्ध कराई जाने वाली नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकों की छपाई का टेण्डर तक नहीं हो पाया है। ऐसे में जुलाई अगस्त से पहले इन किताबों का छपकर स्कूलों तक पहुंच पाना किसी भी दशा में मुमकिन नहीं दिखता। ऐसे में फजीहत से बचने के लिए विभाग ने अब जुगाड़ का सहारा लिया है। यह अलग बात है कि यह जुगाड़ का फार्मूला उसकी और भी फजीहत करवा रहा है।

दरअसल विभाग की अगली कक्षा में प्रोन्नत होने वाले बच्चों से किताबे वापस लेकर दूसरे बच्चों को देने की मंशा है। लेकिन साल भर छोटे-छोटे बच्चों के पास रहने वाली किताबे अब किस दशा में पहुंच चुकी होगी। यह शायद महकमे के अधिकारियों को पता नहीं है। पिछले पन्द्रह दिन से ताबड़तोड़ स्कूल चलो अभियान रैलियों के जरिये जहां शत-प्रतिशत नामांकन का राग अलापा जा रहा है। वहीं विभागीय नीतियां ही खुद इसमे रोडा बनती दिख रही है। पिछले डेढ़ साल से भी ज्यादा समय से रंगाई पुताई और मरम्मत का इंतजार कर रहे स्कूल भवनों और उन पर लिखे सब पढ़े सब बढ़े जैसे नारो की चमक बजट के अभाव में धुंधली पड़ चुकी है।

         खबर साभार : डीएनए

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