माननीय उच्च न्यायालय की "शिक्षा पर चिंता" और उसके आलोक में फैसले का आना "शिक्षक नेताओं" के लिए प्रश्न चिन्ह और चिन्तनीय विषय है कि इस फैसले पर सरकारों के सामने अपना पक्ष कैसे और किस आधार के बिना पर रखेंगें-
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जैसा कि माननीय उच्च न्यायालय का फैसला आया है तो उन बिन्दुओं को एक बार बातों में परखा जाए कि शिक्षकों पर गैर शैक्षणिक कार्यों को लेकर अब तक कई बार शिक्षक नेताओं ने और विभिन्न सरकारों के अब तक के कार्यव्यवहारों पर एक नजरें करम करें तो कथनी और करनी में बड़ा सा खाई दिखयी देता रहा है।
एक्ट और अधिनियम एक तरफ रखकर विचार करें कि कार्यव्यवहार की परिणती इसके उलट है। कल के विभागीय मुखिया के विधानसभा के बयान और आज माननीय उच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में देखा जाए तो "बेसिक शिक्षा" का एक शिक्षक होने के नाते मैं कतई आश्वस्त नहीं हो पा रहा हूँ कि आगे भी गैर शैक्षणिक कार्यों में चल रहे प्रक्रियाओं से अलग हटकर कुछ नया करने की व्यवस्था को शिक्षक नेतागण कायम करवा पायेंगें या कई गुजर चुकी और वर्तमान सरकारें शिक्षकों को उनके मूलभूत दायित्वों और कर्तव्यों को निभाने के लिए पूरा मौका और पूरी निष्ठा के साथ सहयोग देगीं |
खैर जो भी हो हमको जो कहना सुनना था वो हमने आप सबके सामने अपनी बातों में रख दी ताकि याद रहे हमको और आप सबको ! तो आगे सबके दाता राम सो राम दादा ही जानें क्या होगा ?
|| जय शिक्षक जय भारत ||
खबर साभार सम्पादकीय : दैनिकजागरण
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