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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

कक्षा 1 से बारहवीं तक अनिवार्य हो संस्कृत की पढ़ाई : शिक्षा नीति में संस्कृत के प्रोत्साहन के लिए केंद्र को भेजेंगे प्रस्ताव-

कक्षा 1 से बारहवीं तक अनिवार्य हो संस्कृत की पढ़ाई : शिक्षा नीति में संस्कृत के प्रोत्साहन के लिए केंद्र को भेजेंगे प्रस्ताव-

लखनऊ (ब्यूरो)। केरल व राजस्थान में कक्षा एक से लेकर बारहवीं तक संस्कृत को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। इसे देश के प्रत्येक राज्य में लागू करना चाहिए। आयुर्वेद की उपाधि (बीएएमएस) के लिए संस्कृत की अर्हता अनिवार्य हो। इंजीनियरिंग, एलएलबी, मेडिकल, एमबीए आदि प्रोफेशनल कोर्सेज में भी संस्कृत को शामिल किया जाए। साथ ही संस्कृत पाठशालाआें का संरक्षण व संवर्द्धन किया जाए।

इन बिंदुओं को केंद्र सरकार की 2015 की शिक्षा नीति में शामिल करवाने से संबंधित प्रस्ताव रविवार को जनपदीय संस्कृत सम्मेलन में तैयार किया गया। संस्कृत भारती संस्था की ओर से निरालानगर स्थित माधव सभागार में हुए सम्मेलन में प्रदेशभर के विद्वानों ने अपने विचार रखे। डॉ. श्यामलेश तिवारी ने कहा कि पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने से संस्कृत को आसानी से प्रोत्साहित किया जा सकेगा। 1957 में बने संस्कृत आयोग की संस्तुतियों को भी इस परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए।

संस्था के प्रचार प्रमुख श्रीशदेव पुजारी ने बताया कि जनपद स्तरीय संस्कृत सम्मेलन का उद्देश्य संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए बुद्धिजीवियों केविचारों को सरकारों तक पहुंचाना है ताकि शिक्षा नीति में संस्कृत के विकास की रूपरेखा बनाई जा सके। यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, केरल आदि प्रदेशों के140 से अधिक जनपदों में यह सम्मेलन कराया जा चुका है।

मुख्य अतिथि आईआईटी कानपुर के प्रो. नचिकेता तिवारी ने कहा कि संस्कृत में निहित ज्ञान केभंडार के शोधपरक अध्ययन की जरूरत है ताकि अज्ञात विषयों की जानकारी भी मिल सके। आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. अखिलेश कुमार गर्ग, केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो. सूर्यकांत त्रिपाठी, सहित गायत्री परिवार व आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े विद्वानों ने भी विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें संस्कृत के महत्व को दिखाया गया।

          खबर साभार : अमरउजाला

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