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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

परिषदीय प्राइमरी स्कूलों की परीक्षा बोर्ड हो या उच्च शिक्षा, फिर घर से कॉपियां लेकर आएंगे बच्चे;विभाग के पास कोई बजट नहीं-

परिषदीय प्राइमरी स्कूलों की परीक्षा बोर्ड हो या उच्च शिक्षा, फिर घर से कॉपियां लेकर आएंगे बच्चे;विभाग के पास कोई बजट नहीं-

"विभाग के पास परीक्षा के लिए लिए कोइ बजट है ही नहीं। इसलिए स्कूलों को विभाग रुपये कहां से देगा। अगर शासन इसके लिए पैसे देता है, तो स्कूलों को दिया जाएगा।"
-प्रवीण मणि त्रिपाठी,बेसिक शिक्षा अधिकारी

लखनऊ : बेसिक शिक्षा के लिए मुख्यमंत्री ने पिछले बजट में 29,380 करोड़ रुपये तो दिए थे, लेकिन इतने बजट के बावजूद परिषदीय स्कूलों के बच्चों को इस बार भी एग्जाम देने के लिए घर से कॉपियां लानी पड़ेंगी। प्रश्नपत्र की जगह ब्लैक बोर्ड पर चॉक से सवाल लिखे जाएंगे। परिषदीय स्कूलों की पहली से आठवीं कक्षा तक की परीक्षाएं 11 मार्च से होनी हैं। शिक्षा विभाग ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि स्कूलों को परीक्षा की तैयारी अपने मद से करनी होगी। विभाग के पास परीक्षा के लिए कोई भी बजट नहीं है।

      चंदे से 'छपते' हैं प्रश्नपत्र-

स्कूलों में कॉपिया तो बच्चे ले आते हैं, लेकिन प्रश्नपत्र छपवाने का जिम्मा स्कूलों पर ही होता है। स्कूलों के पास परीक्षा का कोई बजट न होने के कारण कुछ जगह तो शिक्षक अपने पैसे से हाथ से लिखे प्रश्नपत्र की फोटो कॉपी करा लेते हैं जबकि ज्यादातर जगह ब्लैक बोर्ड पर ही सवाल लिखे जाते हैं। प्राथमिक विद्यालय माल के शिक्षक अजीत प्रताप ने बताया कि उनके यहां शिक्षक आपस में पैसे मिलाकर प्रश्नपत्र की फोटो कॉपी करवाते हैं। पैसे बच जाते हैं तो बच्चों के लिए कॉपिया भी आ जाती है। पन्ने फाड़कर बांट दिए जाते हैं, जिस पर वे उत्तर लिखते हैं।

     पांच हजार में सब कुछ-

प्राइमरी स्कूलों का वार्षिक बजट पांच हजार और जूनियर हाईस्कूल का बजट सात हजार रुपये होता है। इसी में स्कूलों को फर्नीचर, चॉक, डस्टर, कार्यालय का सामान आदि मंगवाना होता है। परीक्षा के लिए तो कुछ मिलता ही नहीं है।

'लैपटॉप दे सकते हैं, कॉपिया नहीं'-

यूपी प्राथमिक शिक्षक सिंह के प्रदेशीय मंत्री ज्ञान प्रताप सिंह का कहना है कि जब सरकार छात्रों को लैपटॉप दे सकती है तो क्या एग्जाम के लिए कॉपिया नहीं दे सकती। सरकार को चाहिए कि परीक्षा के लिए स्कूलों को अलग से बजट मुहैया कराया जाए, ताकि बच्चों को भी अहसास हो कि वह स्कूल में पढ़ते हैं। साथ ही फर्नीचर की भी व्यवस्था होनी चाहिए। परिषदीय स्कूलों में आज भी बच्चे जमीन में बैठ कर पढ़ते हैं।

   घटा बजट, फिर होगा संकट-

पिछले साल प्रदेश सरकार ने 29,380 करोड़ रुपये बेसिक शिक्षा के लिए दिऐ थे। इसके बावजूद विभाग के पास परीक्षा कराने का पैसा नहीं है जबकि इस बार विभाग का बजट तीन गुना कम हो गया है। ऐसे में अगले साल होने वाली परीक्षा भी बच्चों को अपनी कॉपियों पर ही देनी होगी। प्रदेश सरकार ने इस बार सर्वशिक्षा अभियान के लिए 9,977 करोड़ और प्राइमरी स्कूलों के लिए 200 करोड़ का बजट आवंटित किया है।

      खबर साभार : नवभारत टाइम्स

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