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एक छत के नीचे 'प्राइमरी का मास्टर' से जुड़ी शिक्षा विभाग की समस्त सूचनाएं एक साथ

बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से संचालित प्राथमिक विद्यालयों की दुर्दशा अक्सर सुनने को मिलती है, लेकिन इसी बीच एक अच्छा समाचार.........

        -:अतिरिक्त शिक्षण:-

बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से संचालित प्राथमिक विद्यालयों की दुर्दशा अक्सर सुनने को मिलती है, लेकिन इस बीच एक अच्छा समाचार हरदोई जिले से आया है। यहां एक अभिनव प्रयोग किया जा रहा है। जिला स्तर पर योजना बनी है जिसमें अब बेसिक शिक्षा अधिकारी से लेकर खंड शिक्षा अधिकारी, ब्लॉक समन्वयक तक कुछ विद्यालयों और शिक्षकों का चयन कर रहे हैं। ये शिक्षक पिछड़े और सघन आबादी वाले चयनित विद्यालयों में कक्षा पांच से आठ तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए शाम के समय दो घंटे का अतिरिक्त समय देंगे। लोक शिक्षा केंद्रों पर पेट्रोमेक्स आदि की व्यवस्था की गई है। उद्देश्य यह है कि प्रारंभ में जिन शिक्षकों और विद्यालयों का चयन किया जाए उन्हें अन्य के समक्ष आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। प्रयोग के पीछे की भावना स्वागत योग्य है। इसी अनुरूप परिणाम भी निकलते हैं तो यह निश्चय ही दूसरों के लिए उदाहरण बनेगा, किंतु कुछ सवाल भी हैं।

हमारे यहां परिषदीय विद्यालयों में जितने संसाधन उपलब्ध हैं, उनका ही पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। प्रोत्साहन की योजनाएं अनेक हैं लेकिन उन पर अमल रस्मी ही रहता है। छात्र-शिक्षक अनुपात की दृष्टि से बेशक शिक्षकों की कमी है, किंतु जो उपलब्धता है उसका ही सही उपयोग नहीं होता। दूरदराज के क्षेत्रों में शिक्षकों की उपस्थिति नगण्य रहती है। जो उपस्थित भी होते हैं वह कितनी लगन से पढ़ाते हैं, इस पर सवाल उठते रहते हैं। जहां तक छात्रों का सवाल है तो पूरे विद्यालय समय में उनकी उपस्थिति बनाये रखने में ही शिक्षकों को भी छीकें आ जाती हैं। अक्सर सुनाई देता है कि परीक्षा के समय छात्रों की उपस्थिति पूरी करने के लिए शिक्षकों को घर-घर जाकर छात्रों ही नहीं उनके अभिभावकों की भी मान मनौवल करनी पड़ती है। हर विद्यालय और शिक्षक की यह स्थिति न भी हो तो मोटे तौर पर हमारे परिषदीय विद्यालयों की इस तस्वीर से इन्कार करना मुश्किल है। मध्याह्न् भोजन योजना, निश्शुल्क पुस्तकें और निश्शुल्क विद्यालयी परिधान के वितरण की व्यवस्था है, किंतु प्रोत्साहन के इन उपायों को भी पूरी तरह लागू नहीं किया जा पाता। बच्चों को अतिरिक्त समय देकर शिक्षण का प्रयोग बेहद सराहनीय है किंतु तय मानकों और उपलब्ध संसाधनों का ही पूरी तरह दोहन कर लिया जाए तो हमारे परिषदीय विद्यालयों की तस्वीर बदल सकती है। प्रयोग के परिणाम तो बाद में आएंगे लेकिन इतना तो सभी कर सकते हैं।

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