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हाईकोर्ट : संस्कृत विद्यालयों को प्रोत्साहित करे सरकार -

संस्कृत विद्यालयों को प्रोत्साहित करे सरकार : हाइकोर्ट

Fri, 09 May 2014

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि संस्कृत भाषा विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। राज्य सरकार को इसकी संरक्षा एवं प्रोत्साहन का प्रयास करना चाहिए। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार की उपेक्षा एवं उदासीनता के चलते संस्कृत विद्यालयों की दयनीय हालत है। सरकारी वित्तीय सहायता न मिलने के कारण संस्कृत विद्यालय बंदी के कगार पर हैं। कोर्ट ने सरकार को संस्कृत विद्यालयों को प्रोत्साहित करनेके लिए उपाय करने का आदेश दिया।

कोर्ट ने सचिव, संस्कृत शिक्षा अनुभाग उप्र लखनऊ के 14 नवम्बर 13 के उस आदेश को रद कर दिया जिसके तहत आर्य गुरुकुल महाविद्यालय सिरसागंज, फिरोजाबाद का वित्तीय अनुदान, नार्म पूरा न करने के कारण रोक दिया गया था। कोर्ट ने कहा है कि सचिव ने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के स्टैच्यूट 12.01(1)(ए) की गलत व्याख्या की है। इसमें पीजी कॉलेजों में प्रत्येक में 60 छात्र की अनिवार्यता रखी गई है। इसका आशय प्रथमा से लेकर आचार्य तक 60 छात्र होना है न कि आचार्य में 60 छात्र होना। ऐसे ही शास्त्री तक 50 छात्र, उत्तर मध्यमा तक 40 तथा पूर्व मध्यमा तक के विद्यालय में 35 छात्र की अनिवार्यता है। सचिव ने स्टैच्यूट को समझने में गलती की। केवल उत्तर मध्यमा में 40 छात्र नहीं वरन प्रथमा से उत्तर मध्यमा तक 40 छात्रों की अनिवार्यता है। कोर्ट ने सचिव को नए सिरे से निर्णय लेने का आदेश दिया।

यह आदेश न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने आर्य गुरुकुल महाविद्यालय की प्रबंध समिति की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। नार्म पूरा न करने के कारण याची विद्यालय का वित्तीय अनुदान रोक दिया गया था। यह कार्यवाही हाईकोर्ट के एक आदेश के चलते की गई थी जिसमें कोर्ट ने एक कमेटी बनाकर यह देखने को कहा था कि क्या विद्यालय शर्ते पूरी करते हैं और उनमें पर्याप्त विद्यार्थी हैं।

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मानक पूरे न होने के चलते रद हो चुकी हैं दर्जनों स्कूलों की मान्यता

इलाहाबाद : हाईकोर्ट ने संस्कृत शिक्षा अनुभाग द्वारा लागू छात्र संख्या के जिस मानक को गलत बताया, उसी की आड़ में प्रदेश में करीब सत्तर संस्कृत विद्यालयों का अनुदान वर्षो से अटका है। बसपा सरकार के जमाने में अनुदान लेने की कवायद शुरू की गई थी पर छात्र संख्या न होने व शिक्षकों की कमी आदि के कारण मामला अधर में लटक गया। इतना ही नहीं, छात्र संख्या, भवन आदि का मानक पूरा न होने के चलते वाराणसी में ही एक दर्जन से अधिक संस्कृत विद्यालयों की मान्यता पूर्व में रद की जा चुकी है। नए आदेश के क्रम में इनमें से कई को राहत मिल सकती है।


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