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संस्कृत विद्यालयों की दशा अब सुधरेगी -

तो अब सुधरेगी संस्कृत विद्यालयों की दशा

Sat, 10 May 2014

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : प्रदेश में संस्कृत के विद्या केन्द्र काफी दयनीय स्थिति में हैं। दशकों से इनमें शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है। संसाधनों व सुविधाओं का भी काफी अभाव है। जमाने से उपेक्षा के शिकार इन विद्यालयों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश ने एक आस जगा दी है। यह आस किस तरह पूरी होती है, इस पर सबकी निगाह लगी है।

विश्व की सबसे प्राचीन देववाणी संस्कृत के विद्या केन्द्रों की उपेक्षा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को उचित कदम उठाने का निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार की उपेक्षा एवं उदासीनता के चलते संस्कृत विद्यालयों की हालत दयनीय है। सरकारी सहायता न मिलने के कारण संस्कृत विद्यालय बंदी के कगार पर हैं। कोर्ट ने सरकार को संस्कृत विद्यालयों को प्रोत्साहित करने का आदेश दिया है।

अभी तो हालात काफी खराब हैं। प्रयाग में 39 व कौशांबी में दस अनुदानित संस्कृत विद्यालय हैं जबकि प्रदेश में इनकी संख्या 836 है। इन विद्यालयों में 1992 के बाद से कोई नियुक्ति ही नहीं हुई है। पहले सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के अंतर्गत नियुक्ति होती थी, परंतु 2001 में मध्यमा तक की परीक्षा एवं शिक्षकों की नियुक्ति के लिए माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद का गठन होने के बाद नियम बदल गए। 2009-10 में राज्य सरकार ने माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद के तहत भर्ती शुरू की। इसमें आरक्षण लागू करने का मामला कोर्ट में पहुंचा जहां सारी नियुक्तियों को रद कर दिया गया। इसके बाद से सारा मामला ठंडा पड़ा है। जर्जर भवन, पठन-पाठन सामग्री के अभाव के बीच संस्कृत की पढ़ाई चल रही है। रही-सही कसर शिक्षकों की कमी पूरा कर देती है। स्थिति यह है कि प्रथमा से लेकर महाविद्यालय तक में कहीं एक शिक्षक है, कहीं दो। इसके चलते कई जिलों के विद्यालय बंद हो चुके हैं। संस्कृत विद्यालयों की दुर्दशा के खिलाफ लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे शिक्षक नेता अजय कुमार सिंह बताते हैं संस्कृत की दुर्दशा के लिए सरकार जिम्मेदार है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, मायावती व संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष शंकर सुहैल से मिलकर संस्कृत विद्यालयों की दुर्दशा खत्म करने की मांग की, परंतु आश्वासन के सिवा कुछ न मिला।

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बंद हुए दर्जनों विद्यालय

शिक्षकों एवं सरकारी सहायता के अभाव में प्रदेश में दर्जनों संस्कृत विद्यालय बंद हो चुके हैं। मुजफ्फरनगर, फिरोजाबाद, अलीगढ़, चित्रकूट, कुशीनगर, देवरिया, मेरठ में दर्जनभर विद्यालय बंद हो चुके हैं। शेष अंतिम सांसें गिन रहे हैं। शिक्षकों व संसाधनों की कमी के चलते और विद्यालय भी बंदी के कगार पर हैं।

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प्रयाग स्थित विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या

*-सर्वार्य आदर्श संस्कृत महाविद्यालय बहादुरगंज में स्वीकृत पद 10, वर्तमान संख्या 05, इसमें भी 02 शिक्षक 30 जून को रिटायर होने वाले हैं।

*-श्रीधर्मज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय में स्वीकृत पद 11, वर्तमान संख्या तीन।

*- सौदामिनी संस्कृत महाविद्यालय में पद 08, वर्तमान संख्या दो।

*-हर्षसावित्री संस्कृत महाविद्यालय दारागंज पद 05, वर्तमान संख्या एक।

*-त्रिवेणी संस्कृत महाविद्यालय दारागंज पद 06, वर्तमान संख्या एक।

*-शिवशर्मा संस्कृत महाविद्यालय दारागंज पद 06, वर्तमान संख्या दो।

*-महानिर्वाण वेद विद्यालय दारागंज पद 11, वर्तमान संख्या दो।

*-हरिराम गोपालकृष्ण संस्कृत महाविद्यालय ऊंचामंडी पद 11, वर्तमान संख्या दो।

*-श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय दारागंज पद 12, वर्तमान संख्या तीन।

*-वेदभवन संस्कृत महाविद्यालय अलोपीबाग पद 05, वर्तमान संख्या तीन।

*- शंकराचार्य आश्रम संस्कृत महाविद्यालय अलोपीबाग पद 10, वर्तमान संख्या एक।

*- श्रीमहंत विचारानंद संस्कृत महाविद्यालय बाघम्बरीगद्दी पद 05, वर्तमान पद तीन।

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सरकार संस्कृत भाषा को लेकर गंभीर नहीं है। यही कारण है कि संस्कृत विद्यालयों को उपेक्षित कर दिया गया है। शिक्षकों व संसाधनों के अभाव में हम बच्चों को कैसे पढ़ा सकते हैं।

-राधारमण पांडेय, महामंत्री प्रदेशीय संस्कृत विद्यालय अध्यापक समिति

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संस्कृत के प्रति सरकार उदासीन है, आश्वासन के बाद भी कोई कदम नहीं उठाया जाता। अगर यही स्थिति रही तो देश की भावी पीढ़ी इस भाषा से अनजान रहेगी।

-वीरेंद्र शुक्ल, प्राचार्य श्रीमहंत विचारानंद संस्कृत महाविद्यालय बाघम्बरीगद्दी एवं जिलाध्यक्ष माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति

साभार : दैनिक जागरण




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